कैसे आंसू बन गये हैं हमारी जुबान अनजाने ही और दिन भर की बातचीत से इस भारी नदी को अलहदा करना हमारे लिए मुमकिन नहीं हो रहा अब...
2.
यह भाषा-उद्योग उतना ही फल-फूल सकेगा, जितना वह भाषा को इस्तेमाल करने लायक कच्ची सामग्री में बदल सकेगा, इसके लिये शब्द को अर्थ से जहाँ तक हो सके, अलहदा करना जरूरी है, तब आप शब्द के मनचाहे उत्पाद तैयार कर सकते हैं।